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Friday, 21 December 2012

मंजर




याद नहीं क्या क्या देखा था, 
अब तो सारे मंजर भूल गए,
जहाँ  की गलियों से जब लौटे, 
अपना भी घर भूल गए।।

खुद भी जब अपनी कसमें, 
अपने वादें अब याद नही ,
हम तो  अपने ख्वाब, 
कहीं आँखों में रख भूल गए।।

 जिन्होंने मेरा क़त्ल किया है,
 कोई उन्हें भी बताये " देवा ",
मेरी लाश के फूलों में वो,
 अपना खन्जर भूल गए ।।

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