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Tuesday, 8 January 2013

मुक़द्दर















मुसाफ़िर  के रास्ते बदलते रहे,
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे,
मैं मेरे रास्तों में उलझा रहा ,
दीये भी आँखों में जलते रहे ,
वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया ,
मगर अब बस हाथ मलते रहे ,
प्यार महोब्बत वफ़ा बेरुखी,
किराये के घर की तरह बदलते रहे,
हवा का असर तो कुछ हम पर भी हुआ,
हवाओं के जो रुख बदलते रहे,
लिपट के चिरागों से वो सो गए,
जो फूलों पर करवट बदलते रहे,
कोई हाथ  ही था कंधों  पर ,
जीवन जिससे अभी भी बचे रहे।।

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