Pages

Wednesday, 9 July 2014

अच्छा लगा

बादलों का काफिला आता हुआ अच्छा लगा 
प्यासी इस धरती को हर सावन बड़ा अच्छा लगा 

जिन का सच होना किसी सूरत में मुमकिन न था 
ऐसी ऐसी बातें अक्सर सोचना  अच्छा लगा 

वो तो क्या आता मगर गलत फ़हमियों के साथ 
सारी सारी रात हमको जागना अच्छा लगा 

पहले तो हर कोई इन निगाहों में जचता ही न था 
रफ़्ता रफ़्ता दूसरा फिर तीसरा अच्छा सा लगा 
उस भरी महफ़िल में चंद लम्हों के लिए आना 
उसमे  मेरा आज गुमनाम रहना अच्छा लगा

 

No comments:

Post a Comment