याद नहीं क्या क्या देखा था सारे मंज़र भूल गए ,
उस की गलियों से जब लौटे अपना भी घर भूल गए ,
खूब गए परदेस की अपने दीवार -ओ - दर भूल गए ,
शीश -महल ने ऐसा घेरा मिट्टी के घर भूल गए ,
तुझ को भी जब अपनी कसमें अपने वादे याद नही ,
हम भी अपने ख़्वाब तेरी आँखों में रख कर भूल गए ,
मुझ को जिन्होंने क़त्ल किया है कोई उन्हें बतलाये "देवा " ,
मेरी लाश के पहलू में वो अपना खंजर भूल गए ,
खंजर पर लगे खून के छीटों में हमारे करम धुल गए ,
मरना तो है सबको लेकिन हम तो जीना ही भूल गए ||
nice
ReplyDelete