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Wednesday, 6 June 2012

भूल गए


याद  नहीं  क्या  क्या  देखा  था  सारे  मंज़र  भूल  गए , 
उस  की  गलियों  से  जब  लौटे  अपना  भी  घर  भूल  गए ,
खूब  गए  परदेस  की  अपने  दीवार -ओ  - दर  भूल  गए ,
शीश -महल  ने  ऐसा  घेरा  मिट्टी  के  घर  भूल  गए ,
तुझ  को  भी  जब  अपनी  कसमें  अपने  वादे  याद  नही  ,
हम  भी  अपने  ख़्वाब  तेरी  आँखों  में  रख  कर  भूल  गए ,
मुझ  को  जिन्होंने  क़त्ल  किया  है  कोई  उन्हें  बतलाये  "देवा " ,
मेरी  लाश  के  पहलू  में  वो  अपना  खंजर  भूल  गए ,
खंजर पर लगे खून के छीटों में हमारे करम धुल गए ,
मरना तो है सबको लेकिन हम तो जीना ही भूल गए ||

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