उठती सी उमंग है ज़िन्दगी में रोज नयी,
दिल में रोज एक बोझ सा रह जाता है ,
बेचैन सी निकल जाती है रात आँखों तले से,
उल्जे पन्नों को सुल्जाने में भी डर सा लगता है,
सब जान कर भी नासमझ बना बैठा हु मैं,
इतना सोच कर भी वक़्त कम सा लगता है,
डूब जाना चाहता हूँ में उजाले की गहराई में,
पर आँख खोल देखने का भी मन नही करता है,
बैठा रहूँ उस राह पर जीवन भर ,
जिस राह में साथ आपका अच्छा सा लगता है।।
दिल में रोज एक बोझ सा रह जाता है ,
बेचैन सी निकल जाती है रात आँखों तले से,
उल्जे पन्नों को सुल्जाने में भी डर सा लगता है,
सब जान कर भी नासमझ बना बैठा हु मैं,
इतना सोच कर भी वक़्त कम सा लगता है,
डूब जाना चाहता हूँ में उजाले की गहराई में,
पर आँख खोल देखने का भी मन नही करता है,
बैठा रहूँ उस राह पर जीवन भर ,
जिस राह में साथ आपका अच्छा सा लगता है।।
No comments:
Post a Comment