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Tuesday, 28 February 2012

Suruaat

कैसा  है  ये  सफ़र
मंजर कुछ समझ नहीं आया है
क्या ये है मेरी मंजिल
या साहिल का और कहीं किनारा  है
शुरुआत तो कर चुके
काफिर दिल फिर भी बैचेन है
कब क्या करें हम
मन भी हर वक़्त मचलता है
कहता है  कुछ और
करना न जाने क्या चाहता है
इशारे दिखे जहाँ
नज़रें पहचान ना पाई है
मेहनत करते हुए
दिल में तीस सी चुभी पाई है
साथ है हर कोई 
मन में फिर भी मची तन्हाई है 
शुरुआत तो कर चुके
मगर तसल्ली कहाँ पाई है ।। 
  


 
 

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