जब भी बाहर निकला घर से
बहुत कुछ सुना मैंने मेरे दोस्त
जब भी किसी ने कुछ कहा
कुछ अच्छा तो कुछ बुरा भी लगा
कुछ सच्चा मगर कुछ झूठा लगा मैंने पूछा उससे की
क्या तुम उन्हें जानते हो
उन्हें कैसे पहचानते हो
पर वो झूठ कह कर भी सच बोल गया
और अपनी ख़ामोशी से सब बोल गया
क्या कहूँ अपने उस दोस्त से मैं
के उसे बोलना नहीं आता
या मुझसे अपनी बात बताना नही आता
पर क्या करूँ मेरे दोस्त
मुझे भी तेरे बिना जीना नहीं आता ।।
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