सुबह सुबह एक ख्वाब की दस्तक पर दरवाजा खोला ,
देखा आज सरहद के उस पार से कुछ मेहमान आए है,
आँखों से मायूस थे सारे, चेहरे सारे सुने सुनाये,
हाथ धोये, पाँव धुलवाए, आँगन में आसन लगवाये,
और तंदूर के मटके पर कुछ मोटे मोटे रोट पकाए ,
पोटली में मेहमान मेरे पिछले साल का गुड लाए,
अचानक आँख खुली तो देखा घर में कोई नहीं था ,
हाथ लगा कर देखा तो तंदूर अभी बुझा नहीं था,
होटों पर मीठे गुड का जायका अभी तक चिपका था,
ख्वाब था शायद, ख्वाब ही होगा,
सुना सरहद पर कल रात गोली चली थी,
जरुर वहां कुछ ख्वाबों का खून हुआ होगा ।।
Lines By गुलजार साहब :-
बंद आँखों से मैं रोज सरहद के पार चला जाता हूँ मिलने मेहंदी हसन से ,
सुनता हूँ उनकी आवाज को चोट लगी है और गजल अभी खामोश है ......... :-( :-(
हसन साहब Get well soon ...
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