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Monday 9 April 2012

उम्मीद

I heard few lines few days before

उम्मीदों वाली धूप, Sunshine वाली आशा ....

बस यही सोच कर कुछ याद आ गया ....
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शाम का सूरज देखे अब तो अरसा हो चला है ,
चाँद भी देखा नही चांदनी को देखे अरसा हो चला है,
देर हो जाती है आज कल घर आते आते ,
थके होते है इतने के कैसे करे अपनों से बातें,
सवेरे की धूप भी अब तो आँखों में चुबती सी लगती है,
रात को चलती ठंडी हवा भी नींद कहाँ ला पाती है ,
बारिस के पानी से भी डर सा लगा रहता है,
नीर निगलते भी स्वाद बदला सा लगता है ,
अब तो बस यही उम्मीद सी रहती है ,
यूँ ही  ज़िन्दगी कटती सी लगती है ।।

What are I waiting for ?
another day another dawn.
some day I have to find a new way to peace.