आईना देख कर खुद का वजूद नजर आया
वो पहचाना हुआ चेहरा नजर नहीं आया
सफ़र में उसके कहीं अपना घर नहीं आया
वो सब एहतराम से करते हैं खून भरोसे का
हमें अब तक भी मगर ये हुनर नहीं आया
मेरे वादे का जुनूँ देख, तुझसे बिछड़ा तो
कभी ख़्वाबों में भी तेरा ज़िकर नहीं आया
दुश्मनी हमने भी की है मगर सलीके से
हमारे लहजे में तुमसा ज़हर नहीं आया