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Monday 7 August 2017

कौन जाने

कौन जाने  कौन जाने...
कौन जाने क्यों ऐसा होता है

जब कोई चैन अपना खोता है
जब कोई सपना टूट जाता है
जब कही कोई छूट जाता है
आँखें ये गम छुपा भी लेती है
दिल मगर होले-होले रोता है

कौन जाने  कौन जाने......
फूल खिलते है तो मुर्झाते  है
दिल धड़कते है तो गम पाते है
रुत जो आती है चली जाती है
दिल मगर होले-होले रोता है

कौन जाने  कौन जाने......
लोग ऐसे भी दिन बिताते है
जो भी गम है उससे छुपाते है
कोई शिकवा गिला नहीं करते
जख्म खा कर भी मुस्कुराते है
दिल मगर होले-होले रोता है।
कौन जाने कौन जाने।।

Sunday 11 June 2017

आहिस्ता चल जिंदगी


आहिस्ता  चल  जिंदगी,अभी
कई  कर्ज  चुकाना  बाकी  है
कुछ  दर्द  मिटाना   बाकी  है
कुछ   फर्ज निभाना  बाकी है
                   रफ़्तार  में तेरे  चलने से
                   कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
                   रूठों को मनाना बाकी है
                   रोतों को हँसाना बाकी है
कुछ रिश्ते बनकर ,टूट गए
कुछ जुड़ते -जुड़ते छूट गए
उन टूटे -छूटे रिश्तों के
जख्मों को मिटाना बाकी है
                    कुछ हसरतें अभी  अधूरी हैं
                    कुछ काम भी और जरूरी हैं
                    जीवन की उलझ  पहेली को
                    पूरा  सुलझाना  बाकी     है
जब साँसों को थम जाना है
फिर क्या खोना ,क्या पाना है
पर मन के जिद्दी बच्चे को
यह   बात   बताना  बाकी  है
                     आहिस्ता चल जिंदगी ,अभी
                     कई कर्ज चुकाना बाकी    है
                     कुछ दर्द मिटाना   बाकी   है
                     कुछ  फर्ज निभाना बाकी  है।।