आज गुमसुम हवाएं लोरियां सी सुनाती रही ,
मेरी तन्हाई फिर मुझे सताती रही ,
सन्नाटों को चीरती ,
किसी की याद आती रही ।
मेरी कलम सफ़ेद कागच पर ,
लिख लिख कुछ मिटाती रही ,
सूखे से लबों पर जैसे
कोई बात आती सी रही,
किसी की याद आती रही ।
बीते हुए पल कभी ना लौटेंगे,
ना ही लौटेंगे दूर जाने वाले,
दोपहर में तेज हवाएं गली में ,
जैसे धूल उड़ाती सी रही,
किसी की याद आती रही ।
सूखे पत्तों की सरसराहट मुझे ,
किसी की याद दिलाती रही ,
मेरी उँगलियाँ रेत पर जैसे ,
मेरी किस्मत लिखती रही मिटाती रही,
किसी की याद आती रही ।।