Pages

Wednesday, 27 November 2013

राहें शेष नहीं

साहस और मैं .. 

हालातों से मजबूर यह  ज़िन्दगी नहीं है,
जब  जज्बातों में पिरोये सपने कई है,

देहकता है आगाज, आज कुछ कर दिखाने को,
दुर्बल है धड़कन पर  साहस नई है,

लम्बे दशकों से ठहरा  मैं, इस उड़ान की उम्मीद में,
जब देखा धरातल से, तो समझा कि क्षितिज दूर कहीं है,

पर अब बस बढ़ चले है कदम और ऊंचाई पाने को, 
ना मिल सका तो कोई गम नहीं , पर खामोश जहन में उम्मीदें कई है,

कहते है लोग कि जरुर हारूंगा मैं,
पर ये जुनून ही तो परिचय है मेरा, नहीं तो शायद कुछ और नहीं है ... 

जानता हूँ कि आसान तो न होगा यूँ चलते चलते रहना,
लेकिन इस जीवन को देने के लिए , अब राहें शेष नहीं है 
अब राहें शेष नहीं है
अब कुछ और शेष नहीं .......

No comments:

Post a Comment